भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एते दूरि देसनि सौं सखनि-सँदेसनि सौं / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:41, 26 मार्च 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एते दूरि देसनि सौं सखनि-सन्देसनि सौं
लखन चहैं जो दसा दुसह हमारी है ।
कहै रतनाकर पै विषम बियोग-बिथा
सबद-बिहीन भावना की भाववारी है ॥
आनैं उर अन्तर प्रतीति यह तातैं हम
रीति नीति निपट भुजंगनि की न्यारी है ।
आँखिनि तैं एक तो सुभाव सुनिबै कौ लियौ
काननि तैं एक देखिबै की टेक धारी है ॥71॥