भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एना नै चलतै काम अब / कुमार मुकुल

Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:19, 23 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= ​कुमार मुकुल​ |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माहटर-महटरनी सुनू अहां सभ
एना नै चलतै काम अब
छठे-छमाही अहों सभे के
होय के रहतै इम्तिहान अब

बिलैक-बोर्ड छै उज्‍जर भ गेल
कुर्सी सब तिनटंगा हो
पंचम बरग के छान्‍ही उड़लै
करै ल पड़तै चंदा हो।