भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एव सरह भणइ खबणाअ / सरहपा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एव सरह भणइ खबणाअ मोक्ख महु किम्मि न भावइ।
तत्त रहिअ काया ण ताव पर केवल साहइ॥


सरह ऐसा कहता है कि क्षपणकों का मोक्ष मुझे अच्छा नहीं लगता। उनका शरीर तत्वरहित होता है और तत्वरहित शरीर परमपद की साधना नहीं कर सकता।