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एहि जंगलसँ ओहि जंगलमे बताह महादेव जकाँ / राजकमल चौधरी

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(एक)

हमरालोकनि कोनो-ने कोनो अन्हार दोगमे सन्हिआयल
ताकि रहल छी अपन बीतल वयस
ताकि रहल छी नगर-जीवनक एहि नरकवासमे एक मिसिया
सुख
एक मिसिया शान्ति आ कखनो-कखनो प्राणक सुरक्षा
कखनो कोनो रंग-रभस
हमरालोकनि छुटपटा रहल छी जेठक रौदमे जरैत
पथपर माथ फटैत अछि टाङ लटपटा रहल अछि
अप्पन चाहक पेयालामे एक मिसिया चिन्नीक हेतु
आँखिक पकोटमे कोनो एकटा सजीव दृश्य
अबोध शिशुक अकारण मुस्की
अपरिचित सुन्दरीक दृष्टि-आग्रह
परिचित संगी-संघातिक निर्लज्ज निर्दोष
हँसी-ठहाका...
एक मिसिया चिन्नीक हेतु
हम सभ बन्हबाक इच्छा करैत छी सचिवालयक
घड़ी टावरसँ दरभंगा-सहरसा पूर्णियाँक अप्पन गाम धरि
अनसोहाँत नागरिक शब्दावलीसँ कोनो प्रिय प्रेयसी
प्राणवाही नाम धरि
हमरालोकनि
कोनो-ने-कोनो अन्हार दोगमे सन्हिआयल ताकि
रहल छी अपन बीतल वयस अप्पन बीतल नाम
संभवतः गंगानदीक एहि घाटपर
अनैरुआ घास-पात जकाँ सिनेमाघरक चारूकात
पसरल एहि भीड़केँ संभवतः
चिड़ै याटॉड़ किंवा मोसल्लहपुरक
संभवतः एहि थाल-किच्च बाटपर
हेरा गेल’ अछि अप्पन गाम
घेघिआयल स्वरमे आकाशवाणीसँ चिकरैत छथि
देवतागण
करैत जाउ सभ क्यो परिवार-नियोजन
देहपर मोनपर ठोरपर ठेहुन पर पेटपर पाँखिपर
हाथपर आँखि पर
कसिक’ बान्हू विदेशी गहूम आ देसी रासनकार्डक
ससरफानी अन्नचक्रक कराल बन्धन
मुदा गरदनिमे गिरह बान्हि घरनिसँ लटकू जुनि
पीठ पर जे लादल अछि बोझ
सन्तानक स्कूल-फीस स्त्रीक अखण्ड रोग
कन्याक चढ़ैत वयस
तकरा हे नगरवासी कोनो दिन पटकू जुनि
चिकरैत छथि सदिखन नेतागण-देवतागण
आ सदिखन दुर्भिक्ष अन्नाभाव नरसंहार
महामारी दंश उपदंश चलल अबैत अछि हमरे सभक
घर-आङन दिस
हमरे सभक हृदयसँ सभटा गोत सभटा कविता
बिला जाइत अछि
हमरेसभक कोँढ़-करेज खाइ’छ
सभसँ पहिने महाकाल हमरे सभक प्राण होइत अछि
देश-पात्र लेत सभसँ पैघ जंजाल
कत्त’ जाइ आब हमरालोकनि
ककरा बाँहिमे कील कवच जकाँ बान्हि राखी
अप्पन अस्तित्व
कोन दुर्भाग्यपर आन्हर-बताह जकाँ हँसि-गाबि ली
कोन दुर्दशा पर बूढ़ि विधवा जकाँ करी शोक
एहि अन्धकूपमे हमरा सभक संगे बैसल अछि
दू-चारि नहि दू हजार चारि सय विषधर साप
चारूकात लहलह-सहसह करैत्
आ एकटा पीयर सन भयभीत बेङ हमरा सभक
निस्तब्ध प्राण-विवरमे
पैसल अछि...

(दू)

बीस किंवा अठारह वर्ष पहिने गामसँ पड़ा आयल छलहुँ
हमरासभ अपस्याँत मात्र अपना अपना लेल
कोनो एकटा कल्पवृक्ष कोनो एकटा कामधेनु करैत सन्धान
...दुन्नू प्राप्त भइए गेल
एहि नगरमे प्रतिमास एक बेर कल्पवृक्ष झहराबइत’ छि
किछू टाका प्रति तेसर वर्ष एकबेर कामधेनु
करैत छथि अप्पन मातृधर्मक इतिवृत्ति अभिज्ञान
कामधेनुसँ कल्पवृक्ष आ कल्पवृक्षसँ कामधेनुक
एहि अन्तहीन महायात्रामे नहि स्मरण होइत’ छि
वन श्रीकुंज मेघ मलार बारहमासा
राधाधानो नदी तट आम्रतरु पंक्ति पूजा-गीत तुलसी गाछ
चम्पा-फूल गामक भगवती
किछ नहि स्मरण होइत छि आब किछु नहि आन किछ नहि
केवल अप्पन टूटल कान्हपर लदने वर्त्तमान
प्रजापति-यज्ञमे भस्म भेल अग्नि जर्जर प्राणक सती
हमरालोकनि
बताह महादेवजकाँ एहि सड़कसँ ओहि सड़कपर
एहि जंगलसँ ओहि जंगलमे
बौआ रहल छी वीतदुःख वीतक्रोध वीतशोक
अप्पन मरणमे अमंगलमे

(मिथिला मिहिर: 21.8.66)