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ए बहू आई असल गंवार / हरियाणवी

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ए बहू आई असल गंवार या तो सासू की गैल लड़ै सै
सासू कहण लागी बहू उठ कै तैं पीस ले
चूल्हा कासण और बुहारी उठ कै नै देले नै
रोटी पोणी पाणी भरणा पड़ी पां पसार कै
काया मेरी बा ने घेरी सांस ल्यूं मूं पाड़ कै
बहू झुंझलाई बूढ़ी मारी है पछाड़ कै
भाजो रै नगरी के लोगो बूढी बोली ललकार कै
बुढिआ पड़ी ए पड़ी ससडै सै बहू सास की तरफ सरके सै
ऐ बहू आई असल गंवार...
पड़ी थी पुकार बूढ़ा आया लाठी उठाय कै
ओछे रे कुटम की ओछी बड़गी घर में आय कै
जाणू था मैं सन्तो तन्नै ल्याया था घर ब्याह कै
बहू झुंझलाई मूसल ल्याई सै उठाय कै
मूसल उठाया बुढै के मार्या हे उठाय कै
आडी खड़ी खाट बूढ़ा कूद गया सुसाय कै
सिर फूट्या गोडै फूटे पड्या धरण में आय कै
ऐ बहू आई असल गंवार...
बाहर तै जद आया भौंदू रोण लागी कलहारी नार
नर के मैं नाए ब्याही जीओ क्यूं मरे भरतार
बुढिआ नै गाली दीनी बूढ़ा गया लाठी मार
धमकी दे चाल्ली मन्नै न्यूं हे पडूंगी कूएं में जाय कै
हो मैं बोली ना सरम की मारी हो पति कुलां की रख दई थारी
ऐ बहू आई असल गंवार...
नार का सिखाया भौंदू जा पकड़ी बूढी की नाड़
पोली मैं तो बूढ़ी पीटी मुक्के मारे दोए चार
कित ग्या तलाकी बूढा इबे द्यून उन्ने सुधार
गद्धमगध बूढी पीटी जा पकड़ी बूढ़े की नाड़
के मैं जींदा नहीं जाणा इबे देऊं तन्नै मार
पूत तो सपूत दीजो हरदम रह सेवा में तैयार
इसे तै पूत तै न दूरे राखो करतार
ऐ बहू आई असल गंवार...