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ऐ! ज्ञान के दिवाने उधो कछु नहीं जाने प्रेम / शिवदीन राम जोशी

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(गोपियों का उद्धव के प्रति संम्बोधन)

ए! ज्ञान के दिवाने उधो कछु नहीं जाने प्रेम,
प्रेम की न बात, आया ज्ञान तू सिखाने को।
दर्द प्यार प्रेम का है, दवा लाया और-और,
यही पाई ठौर मूर्ख मन के बहलाने को।
आग प्रेम की न बुझे, ज्ञान को जलाय देगी,
कहे शिवदीन आया और तू जलाने को।
साथ गाता नांचता था खाता माखन चौर-चौर,
कृष्ण नहीं आया भेजा तुम्हे समझाने को।

कर्णफूल कानों में है पहने अब मुद्रा उधो,
घर-घर घूम-घूम अलख जगायेगी।
साधे हम जोग रोग जोग तू सिखाने आया,
बन-बन जाय-जाय कंद मूल खायेंगी।

प्रेम रस बस भई तू क्या जाने निरदई,
स्वर बांसुरी का त्याग-त्याग सींगियां बजायेंगी।
ज्ञान के गुमान वाला उधो बता मतवाला,
एती ब्रजबाला मृगछाला कहां पायेंगी।

जिन्हे देख-देख हम जीती ब्रजमण्डल में,
अब सूख रही मीन, नीर बिन क्या करे।
हाल है बेहाल नंदलाल ओ गोपाल बिन,
कुंज गली प्रेम गली आवें झांक-झांक रे।

यमुना के तीर भरे नीर अब नैनां में है,
कंकरी वे गगरी में मारी ताक-ताक रे।
ध्यान लाया ज्ञान लाया भूल से न प्रेम लाया,
तू ही बता उधो हम हां करें या ना करें।

ज्ञान परदा फाड देगा प्रेम का दिवाना झार,
कहें बार-बार उधो मान-मान मानजा।
उलझ-उलझ मरे कौन ठौर पग धरे,
यहां ज्ञान टिके कहां अब भी पहचान जा।

प्रेम का प्रकाश रास महारास कृष्ण संग,
मूढ़ ज्ञान चादरी को तू भी व्यर्थ तान जा।
प्रेम है रसीला रंग ज्ञान हुडदंग व्यंग,
ठाने मती हठ बात प्रेम हूँ से जानजा।

चाह नहीं परवाह नहीं ए ! उद्धव ज्ञान नहीं मन भावे,
श्याम सलौना से नैन लगे अब क्यूं गुन और हमें समझावे।
प्रीत लगी उस प्रितम से विपरीत कलेजे क्यूं हूंक जगावे,
सरगुण कृष्ण रसीला पिया बिन चैन कहां जो तू ज्ञान सधावे।

प्रेम ही प्रान है, प्रानन में प्रभु, प्रेम पिया संग खूब रही हैं।
क्यू पाती पढावत, छाती जलावत, प्रेम पगी महबूब रही है।
बिछुरे जब से, नहीं चैन परे, इस जीवन से हम उब रही हैं।
नहीं जान सके तुम गोपिन को अरे प्रेम के सिन्धु में डूब रही हैं।

मुक्ति की चाह नहीं, चाह जिन्हें दीजे ज्ञान,
जोग सधवा के उन्हे वैरागन बनाइये।
हम हैं सुहागन उधो, श्याम ते सिंगार करें,
प्यार प्रेम वृन्दावन, प्रेम गीत गाइये।
यहाँ ज्ञान ध्यान लाये, जोग सधवाने आये,
यहाँ प्रेम प्रेम है, और बात ना बढाइये।
गोपी कहें बार -बार, प्रेम प्यार अंग-अंग,
ये है वृन्दावन उधो, मथुरा ही जाइये।

ज्ञान सिखाने मैं आया तुम्हें, सही प्रेम का पाठ मैं सीख चला,
धन्य है प्रेम के पाठक को पढि प्रेम के मारग ठीक चला।
ज्ञान कबान ना बान सधा उर प्रेम बसा कर नीक चला,
सो जन्म रहूं ब्रज की रज में तुमसे यही मांग के भीख चला।