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ऐजा अगनी मेरा मातलोक / गढ़वाली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ऐजा अगनी<ref>अग्नि</ref> मेरा मातलोक<ref>मातृलोक</ref>, मेरा मातलोक
त्वै बिना, अगनी, ब्रह्मा, भूखो रैगे, ब्रह्मा भूखे रैगे
कनु<ref>कैसे</ref> कैकि औंलू, कनु कैकि ओलू, तेरा मातलोक
तेरा मातलोक यो बुरो अत्याचार, यो बुरो अत्याचार
क्या होलो अगनी बड़ो अत्याचार, बुरो अत्याचार
माया-धीया<ref>माँ-बेटी</ref> माया-धीया ऊजो-पैंछों<ref>लेन-देन</ref>
बेटा-बाबू को लेखो-जोखो<ref>लेखा-जोखा</ref>
ब्वारी<ref>बहू</ref> ह्वै की सासू अड़ाली<ref>सिखाती</ref>
नौनो<ref>बेटा</ref> ह्वै का बाबू पढ़ालो
नगरी का लोको<ref>लोग</ref> नगरी का लोको तै मातलोक।
मी<ref>मुझे</ref> तैं लत्याला<ref>लात मारेंगे</ref> थक थूकाला,
कनु कैकि औलो, कनु कैकि ओलो ते मातलोक?
तुमारा लोक मा बढ़ो अत्याचार
तुमारा लोक को तुमारा लोक को खोटो चलण<ref>अनोखी चाल</ref>।
ऐजा अगनी ऐजा अगनो मेरा मातलोक,
त्वै बिना अगनी ब्रह्मा भूखो रैगे।

शब्दार्थ
<references/>