भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऐतराज / वीरू सोनकर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे चलने के तरीके पर, उन्हें ऐतराज है
मैं जिस टोन में बात करता हूँ, उस पर ऐतराज है
मैं यहाँ-वहाँ फिरता हूँ, मेरे कहीं न टिकने पर ऐतराज है
मेरे गंदे जूते, मेरी डिग्रियां और मेरी कविताओ पर भारी ऐतराज है
मैं कहता हूँ आप मित्र है मेरे
उन्हें मेरे मित्र होने पर ऐतराज है,
दरअसल वह सजग रहे और मैं बेपरवाह
उन्हें मेरी बेपरवाही, और खुद के सजग होने पर ऐतराज है