ऐशो-इशरत की ही फ़रमाइश नहीं
ज़िन्दगी ऐय्याश की ख़्वाहिश नहीं
दूसरों के नापते हैं क़द, मगर
अपनी ख़ातिर कोई पैमाइश नहीं
उस फ़सल के ज़िक्र से क्या फ़ायदा
इस ज़मीं पे जिसकी पैदाइश नहीं
शेर होता है ख़यालो-सोच से
शायरी लफ़्ज़ों की आराइश नहीं
क्या यहाँ बोलें, रवायत के सिवा
कुछ नया कहने की गुंजाइश नहीं