भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऐसा क्यों होता है / रामस्वरूप 'सिन्दूर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

‘पिक्चर’ देख रहा होता हूँ
तो रो पड़ता हूँ!
ऐसा क्यों होता है
मैं ऐसा क्यों करता हूँ ?

बच्चों को अच्छी लगती है
मेरी नादानी,
इन्द्रधनुष रच देता
मेरी आँखों का पानी,
ख़ुद को भी सुन पड़े न
ऐसी आहें भरता हूँ!

बंद दृगों में
‘सीन’ फिल्म के चलने लगते हैं,
अन्ध गुफाओं में
जुगनू-से जलने लगते हैं,
आखेटी सपनों से
मृग-शावक-सा डरता हूँ!

देख न पाया पूरी ‘मूवी’
अब तक मैं कोई,
धूमिल होने लगी दृष्टि
तो लहरों में धोयी,
मझधारों की पतवारों से
पार उतरता हूँ!