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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}[[Category:बशीर बद्र]]<poem>ऐसा लगता है ज़िन्दगी तुम होअजनबी जैसे अजनबी तुम हो
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~अब कोई आरज़ू नहीं बाकीजुस्तजू मेरी आख़िरी तुम हो
ऐसा लगता है ज़िन्दगी तुम हो <br>मैं ज़मीं पर घना अँधेरा हूँअजनबी जैसे अजनबी आसमानों की चांदनी तुम हो <br><br>
अब कोई आरज़ू नहीं बाकी <br>जुस्तजू मेरी आख़िरी तुम हो <br><br> मैं ज़मीं पर घना अँधेरा हूँ <br>आसमानों की चाँदनी तुम हो <br><br> दोस्तों से वफ़ा की उम्मीदें <br>किस ज़माने के आदमी तुम हो <br><br/poem>
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