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ऐसा साधू करम दहै / दरिया साहब

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ऐसा साधू करम दहै॥
अपना राम कबहुँ नहिं बिसरै, बुरी-भली सब सीस सहै।
हस्ती चलै भूकै बहु कूकर, ताका औगुन उर न गहै;
वाकी कबहूँ मन नहिं आनै, निराकारकी ओट रहै।
धनको पाय भया धनवन्ता, निरधन मिल उन बुरा कहै;
वाकी कबहुँ न मनमें लावै, अपने धन सँग जाय रहै॥
पतिको पाय भई पतिबरता, बहु बिभचारिन हाँसि करै;
वाकै संग कबहुँ नहिं जावै, पतिसे मिलकर चिता जरै।
'दरिया' राम भजै सो साधू, जगत भेष उपहास करै;
वाको दोष न अन्तर आनै, चढ़ नाम-जहाज भव-सिन्धु तरै॥