Last modified on 2 जून 2014, at 00:11

ऐसा ही होता है / राजेन्द्र गौतम

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:11, 2 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र गौतम |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ऐसा ही होता है
यहाँ हर सफ़र में

कुछ हिलते रूमालों
कुछ भीगी पलकों के
             धुँधलाते अक़्सों को
            याद में रचाये
हर खुलती खिड़की से
कतरा कर नज़रें हम
      गुज़रे हम इन कूचों से
           सहमे सकुचाए
शायद ही लौटें अब
आप के शहर में

एक-एक कर पीछे
छूट गए सारे
     वे दुआ सलामों के
         बोझिल सम्मोहन
बर्फ़ीली खोहों में
तोड़ चुके दम हैं
     रोमिल खरगोशों-से
         परिचित सम्बोधन
एक अजनबीपन ही
भरा हर नज़र में

साँझ की ढलानों पर
इधर-उधर छितरी हैं
     गीतों की ग़ज़लों की
            नुची हुई पाँखें
चुप्पी की किरचों की
आँकती चुभन है
         बदहवास चिड़ियों
         की भरी हुई आँखें
बहती है थकी हवा
डूब कर ज़हर में