भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऐसा है उनके वादों पर ऐतबार करना / पल्लवी मिश्रा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:02, 30 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पल्लवी मिश्रा |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐसा है उनके वादों पर ऐतबार करना,
जैसे अँधेरी रात में साये का दीदार करना।

देर से आने पर उनके कोफ्त नहीं होता है अब,
रफ्ता-रफ्ता सीख लिया है हमने भी इंतज़ार करना।

मेरे दिल की तह तक जाने की तमन्ना है अगर,
पहले मेरे अश्कों के समंदर को पार करना।

वो बेरुखी से ना कहें तो समझेंगे मौत आ गई,
ज़िंदगी का मतलब है उनका हँसकर इकरार करना।

कत्ल ही करना है तो सीने में उतारो खंजर,
कुछ ठीक नहीं लगता है, छुप-छुपकर वार करना।

हालात हैं आज बिगड़े तो कल सुधर भी सकते हैं,
हो सके तो हर हाल में जिं़दगी से प्यार करना।

दोस्ती, मुहब्बत, अहद-ए-वफा लब्ज किताबी बन गये हैं,ख्
इस किताब के पन्नों को नीलाम न सरे-बाजार करना।