ऐसी निज नाम हर्ष हिय हेरो।
रत मत रहत काज अपने को गहन ज्ञान कर चेत सबेरो।
कलीकाल जम जाल बंदु बहुनि में छूट रहो तस काल घनेरो।
ज्यौं रिव किरन तिमिर सब नासत बसत ज्ञान उर मिटत अंधेरो।
जगमगात नाम परिपूरन आद अंत लग स्वारथ तेरो।
जूड़ीराम सरन सतगुरु के दियो लखाय नाम मग मेरो।