भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऐसी री सुहाग मैंने घोर घोर गारौ / बुन्देली

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:01, 13 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=बुन्देली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐसी री सुहाग मैंने घोर घोर गारौ।
सुहाग की क्यारी उनके बाबुल ने लगाई।
सो सींचे मैया रानी सिंचावै सिया जानकी।
टीका रोरी मंे छवि लागी,
माहुर मेंहदी में छवि लागी।
अनवट बिछया में छवि लागी।
ऐसो री सुहाग मैंने घोर-घोर गारौ।
सुहाग की क्यारी उनके काकुल ने लगाई।
सो सींचे काकी रानी सिंचावै सिया जानकी।
ऐसों री सुहाग मैंने...