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ऐसी हो प्रीत निभावजो / निमाड़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

    ऐसी हो प्रीत निभावजो,
    आरे जग मे होय नी हाँसी

(१) बैठ्या बामण चन्दन घसे,
    आरे थाड़ी कुबजा हो दासी
    फुल फुल्यो रे गुलाब को
    माला गुथो हो खासी...
    ऐसी हो प्रीत...

(२) राम नाम संकट भयो,
    आरे दिल फिरे हो उदासी
    तुम हो देवन का हो देवता
    राखो लाज हमारी...
    ऐसी हो प्रीत...

(३) जल डुबता बर्तन तिरिया,
    आरे तिरिया कंुजर हाथी
    पथ राख्यो रे पहेलाद को
    लाज द्रोपता राखी...
    ऐसी हो प्रीत...

(४) दास दल्लु की हो बिनती,
    आरे राखो चरण लगाई
    मृत्यू सी हमक छोड़ावजो
    मन म चिंता हो लागी...
    ऐसी हो प्रीत...