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ऐसे-ऐसे लोग रह गए / मुकुट बिहारी सरोज

ऐसे -ऐसे लोग रह गए।

बने अगर , तो पथ के रोड़ा
कर के कोई ऐब न छोड़ा
असली चेहरे दीख न जाएँ
इस कारण, हर दर्पण तोड़ा
 
वे आचार किए अस्वीकृत
जिनके लिए विचार कह गए।

कौन उठाए जोख़िम उतनी
तट से मँझधारों की जितनी
ख़ुद धोख़ा दें पतवारों को
नौबत अब आ पहुँची इतनी
 
पानी पर दुनिया बहती है
मग़र, हवा के साथ बह गए।

अस्थिर सबके सब पैमाने
तेरी जय-जयकार ज़माने
बन्द कपाट किए बैठे हैं
अब आए कोई समझाने

फूलों को ख़ामोश कर दिया
काँटों की हर बात सह गए।
ऐसे-ऐसे लोग रह गये।