ऐसे ही ऐल फैल कर धावे।
बांधो तन दूदा को झूला पूरन पूर मुलावै।
पकरन पूंछ पुरानी डहके नई नैन नहिं आवै।
जो लो शबद रंग नहिं दरसे तो लग मर्म गमावै।
विन मन खेले खेल नहीं सांचो बन-बन नाच नचावै।
बिन विवेक विद्या पढ़ भूलो रचना रंग लगावै।
बिन हर भजन काल बस ही तो जुगन-जुगन डहं कावै।
जूड़ीराम नाम बिन चीन्हें ऐसई जनम हरावै।