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ऐसे हुये पराये / सांध्य के ये गीत लो / यतींद्रनाथ राही

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क्या हो गया
एक क्षण में हम
ऐसे हुये पराये?

इतनी छोटी बात
तुम्हें क्यों
इतनी बड़ी लगी
कैसे आज
तुम्हारे भीतर
ऐसी बात जगी
सम्बन्धों के सूत्र
नेह के बन्धन
सभी भुलाये?
ऐसी आँख तरेरी
घर का
आँगन दरक गया
शान्त चुप्पियों में सोया
हर कोना
भड़क गया
बात कनखियों से
करते हैं
क्यों अपने ही साये?

बदली सोच
हवायें बदलीं
चश्मे बदल गये
तुलसी का विरवा
मुरझाया
अशगुन
नये-नये
कैसे
हरसिंगार की डालों में
काँटे अँखुआये?