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ऐसो करम मत किजो रे सजना / निमाड़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

    ऐसो करम मत किजो रे सजना
    गऊ ब्राम्हण क दिजो रे सजना

(१) रोम-रोम गऊ का देव बस रे,
    ब्रम्हा विष्णु महेश
गऊ को रे बछुओ प्रति को हो पाळण
    क्यो लायो गला बांधी....
    रे सजना ऐसो...

(२)दुध भी खायो गऊ को दही भी जमायो
    माखण होम जळायो
गोबर गोमातीर से पवित्र हुया रे
    छोड़ो गऊ को फंदो...
    सजना ऐसो...

(३) सजन कसाई तुक जग पयचाण,
    धरील माँस हमारो
सीर काट तेरे आगे धरले
    फिर करना बिस्मलो...
    सजना ऐसो...

(४) तोरण तोड़ू थारो मंडप मोडू,
    ब्याव की करु धुल धाणी
लगीण बखत थारो दुल्लव मरसे
    थारा पर जम पयरा दिसे...
    सजना ऐसो...

(५) कबीर दास न गऊवा मंगाई,
    जल जमुना पहुचाई
हेड़ डुपट्टो गऊ का आसु हो पोयचा
    चारो चरो न पेवो पाणी...
    सजना ऐसो...