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ऐ दिल समाअतों पे सितम की दुहाई दे / निकहत बरेलवी

ऐ दिल समाअतों पे सितम की दुहाई दे
इस बे-कराँ सुकूत में कुछ तो सुनाई दे

ये वस्फ़ भी कमाल-ए-जुनूँ आश्नाई दे
हर आईने में इक वही सूरत दिखाई दे

मैं भी तो रंग-ओ-बू का तमाशा करूँ कभी
क़ुदरत मिरे चमन को भी जल्वा-नुमाई दे

दिल की बसारतों का ये एजाज़ है कि मैं
आँखें भी बंद रक्खूँ तो रस्ता दिखाई दे

हर सम्त ज़िंदगी का है मेला लगा हुआ
लेकिन हर आदमी यहाँ तन्हा दिखाई दे