ऐ नये साल तू खुशियों का ख़ज़ाना ले आ
एक भूखे के लिए अब के तो खाना ले आ
बात करता हो न दहशत की कोई भी जिसमें
मेरे बच्चों के लिए ऐसा ज़माना ले आ
दर बदर ज़िन्दगी जो रोज़ भटक जाती है
उसकी खातिर तो कोई नर्म ठिकाना ले आ
जिनके होठों की हँसी मुद्दतों से ग़ायब है
उनके लब पर कोई मीठा-सा तराना ले आ
थक गए लोग हवाओं के थपेड़े खाकर
आनेवाला है जो हर पल वो सुहाना ले आ