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ऐ फरोगे हुस्न तेरी दिलकशी ज़िन्दा रहे / सादिक़ रिज़वी

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ऐ फरोगे हुस्न तेरी दिलकशी ज़िन्दा रहे
ये अक़ीदत की फिजा ये बन्दगी ज़िन्दा रहे

जब उजालों की चमक में तीरगी ढलने लगी
चाँद चमका ताकि उस की चांदनी ज़िन्दा रहे

बेवफा वह क्या हुए चाहत न जीने की रही
फिर भी जीता इसलिए हूँ ज़िंदगी ज़िन्दा रहे

उम्र-ए-रफ्ता की हैं ज़ंजीरें निगाहों में पड़ी
कश्मकश में दिल है क्योंकर रौशनी ज़िन्दा रहे

साज़ के हैं तार टूटे राग गाऊँ किस तरह
गा रहा हूँ इस लिए कि रागनी ज़िन्दा रहे

दे के धोका दोस्तों ने कर दिया है दर-बदर
शिकवा कर सकता नहीं कि दोस्ती ज़िन्दा रहे

यूं तो दुनिया भूल जाएगी तुझे मरने के बाद
शाए कर दीवान जिससे शायरी ज़िन्दा रहे

सच्चे आशिक दिल्लगी माशूक़ से करते नहीं
दुश्मने दिल ही कहेंगे दिल्लगी ज़िन्दा रहे

बाहया के रुख़ पे नज़रे-बद कभी टिकती नहीं
है दुआ 'सादिक़' की ख़ालिक़ सादगी ज़िन्दा रहे