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ऐ वतन मेरे वतन रूह-ए-रवानी अहरार / जोश मलीहाबादी


ऐ वतन मेरे वतन रूह-ए-रवानी अहरार
ऐ के ज़र्रों में तेरे बू-ए-चमन रंग-ए-बहार

रेज़-ए-अल्मास के तेरे ख़स-ओ-ख़ाशाक़ में हैं
हड़्ड़ियाँ अपने बुज़ुर्गों की तेरी ख़ाक में हैं

तेरे क़तरों से सुनी पर्वत-ए-दरिया हमने
तेरे ज़र्रों में पढ़ी आयत-ए-सहरा हमने

खंदा-ए-गुल की ख़बर तेरी ज़बानी आई
तेरे बाग़ों में हवा खा के जवानी आई

तुझ से मुँह मोड़ के मुँह अपना दिखाएँगे कहाँ
घर जो छोड़ेंगे तो फिर छाँव निछाएँगे कहाँ

बज़्म-ए-अग़यार में आराम ये पायेंगे कहाँ
तुझ से हम रूठ के जायेंगे तो जायेंगे कहाँ