Last modified on 24 अक्टूबर 2010, at 01:46

ओळखतां थकां ई / नीरज दइया

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:46, 24 अक्टूबर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

म्हैं गफल रैयो
थे होकड़ा लगा लगा’र
रचता रैया
नित नूंवां रास !

म्हनै अळघो राख’र सांच सूं
थां साज्या- थांरा मतलब ।

आज म्हैं
थांनै ओळखता थकां ई
थांरा होकड़ा उतारण री ठौड़
होकड़ा लगावण री सोचूं ।