भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ओह कितनी इच्छा है मेरी / ओसिप मन्देलश्ताम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:52, 14 अप्रैल 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओह, कितनी इच्छा है मेरी
कि सुने नहीं कोई मेरी बात
उड़ूँ किरण के पीछे जब मैं
हो नहीं किसी को भी आभास

तुम चमको कहीं आसपास ही
सुख कोई दूजा नहीं ऐसा
रंगत क्या होती है प्रकाश की
सीखो तारों से सहसा

तुम्हें कुछ कहना चाहूँ मैं
फुसफुसा रहा हूँ, ऐ बच्ची
सौंप दूँगा तुझे किसी किरण को
मैं बता रहा हूँ सच्ची-सच्ची

23 मार्च, 1937
वरोनिझ़