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ओ, अंतर्यामी! / प्रतिभा सक्सेना

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मैंने क्या किया?
कुछ नहीं किया मैंने, तुम अर्जुन, तुम दुर्योधन,
द्रौपदी अश्वत्थामा और व्याध भी तुम्हीं!
सूत्रधार और कर्णधार सब कुछ तुम्ही तो हो
तुम्ही ने रचा सारा महाभारत
और झेलते रहे सारे शाप, संताप,
सबके हृदय का उत्ताप!

मुझसे क्या पूछते हो,
 मेरे कर्मों का हिसाब!
सब पहले ही लिख चुके थे तुम
एक एक खाना भर चुके थे!
मुझे ला छोड़ा बना कर मात्र एक पात्र,
अपने इस महानाट्य का, ओ नटनागर!
मुझे तो पूरी इबारत भी पता नहीं थी,
न आदि न अंत!
एक एक वाक्य, थमाते गये तुम
पढ़ती गई मै!

निमित्त मात्र हूँ मैं तो!
रखे बैठे हो पूरी किताब!
अब पूछो मत!
नहीं,
नहीं दोहरा पाऊँगी अब!

ओ,अंतर्यामी,
छोड़ दिया है मैंने
अपने को तुम्हारे हाथों में!
पूछो कुछ मत,
जो चाहो, करो!