भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ओ ! सूरज भोर के / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कविता भट्ट |संग्रह= }} Category:चोका...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | '''धीरे से चल''' | |
− | + | '''ओ ! सूरज भोर के''' | |
+ | कुछ देर तो | ||
+ | रुक जा, दे दे साथ | ||
+ | बोझे ढोने में | ||
+ | अभी कुछ शेष हैं | ||
+ | ईंट-पत्थर-गारे | ||
+ | माना कि है तू | ||
+ | निष्काम कर्मयोगी | ||
+ | आदर्श तेरा | ||
+ | कृष्ण के सन्देश -सा | ||
+ | किन्तु सुन तो | ||
+ | सात घोड़ों वाले तू ! | ||
+ | रथ चढ़ेगा | ||
+ | दिन भर बढ़ेगा | ||
+ | तेरा तो ताप; | ||
+ | किन्तु मैं अकिंचन | ||
+ | सह न सकूँ | ||
+ | बोझ तले आक्रान्त | ||
+ | हूँ कर्मयोगी | ||
+ | साँझ तक तुझ-सा | ||
+ | चलूँगा मैं भी | ||
+ | तू पूजनीय भी है | ||
+ | तेजस्वी भी है, | ||
+ | मैं हूँ धूल- धूसर | ||
+ | कृष्ण अछूत, | ||
+ | और एक अंतर- | ||
+ | तेरे पास है, | ||
+ | रथ सात घोड़ों का; | ||
+ | परन्तु नहीं | ||
+ | मेरे पास कुछ भी, | ||
+ | फिर भी देख- | ||
+ | '''इन्हीं नंगे पाँव से''' | ||
+ | '''मीलों चलना मुझे.''' | ||
</poem> | </poem> |
16:43, 18 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
धीरे से चल
ओ ! सूरज भोर के
कुछ देर तो
रुक जा, दे दे साथ
बोझे ढोने में
अभी कुछ शेष हैं
ईंट-पत्थर-गारे
माना कि है तू
निष्काम कर्मयोगी
आदर्श तेरा
कृष्ण के सन्देश -सा
किन्तु सुन तो
सात घोड़ों वाले तू !
रथ चढ़ेगा
दिन भर बढ़ेगा
तेरा तो ताप;
किन्तु मैं अकिंचन
सह न सकूँ
बोझ तले आक्रान्त
हूँ कर्मयोगी
साँझ तक तुझ-सा
चलूँगा मैं भी
तू पूजनीय भी है
तेजस्वी भी है,
मैं हूँ धूल- धूसर
कृष्ण अछूत,
और एक अंतर-
तेरे पास है,
रथ सात घोड़ों का;
परन्तु नहीं
मेरे पास कुछ भी,
फिर भी देख-
इन्हीं नंगे पाँव से
मीलों चलना मुझे.