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ओ चिरैया / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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ओ चिरैया !

कितनी गहरी

हुई है तेरी प्यास !


जंगल जलकर

ख़ाक हुए हैं

पर्वत –घाटी

राख हुए हैं ,

आँखों में

हरदम चुभता है

धुआँ-धुआँ आकाश ।


तपती

लोहे-सी चट्टानें

धूप चली

धरती पिंघलाने

सपनों में

बादल आ बरसे

जागे हुए उदास ।


उड़ी है

निन्दा जैसी धूल,

चुभन-भरे

पग-पग हैं बबूल

यही चुभन

रचती है तेरी –

पीड़ा का इतिहास ।