Last modified on 2 फ़रवरी 2011, at 20:28

ओ मूर्त्ति ! / अज्ञेय

ओ मूर्त्ति !
वासनाओं के विलय,
अदम आकांक्षा के विश्राम !
वस्तु-तत्त्व के बंधन से छुटकारे के
ओ शिलाभूत संकेत,
ओ आत्म-साक्षय के मुकुर,
प्रतीकों के निहितार्थ !
सत्ता-करुणा, युगनद्ध !
ओ मंत्रों के शक्ति-स्रोत,
साधनाके फल के उत्सर्ग,
ओ उद्गतियों के आयाम !

ओ निश्छाय, अरूप
अप्रतिम प्रतिमा,
ओ निःश्रेयस‍
स्वयंसिद्ध !