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ओ मेरे माज़ी, छुप-छुप के मुझे, यूँ न सता / नीना कुमार

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ओ मेरे माज़ी, छुप छुप के मुझे, यूँ न सता
हौसला है तो आ, इक बार ज़रा सामने आ

दफ़्न हो कर यूँ, तस्वीरों किताबों में कहीं
ज़र्द यादों का खुश्क वर्क़ ना यूँ बनता जा

खामोशियों भरी भीड़ में घुल कर तू कहीं
बज़्म-ए-ज़ीस्त को हमसे, यूँ कर न जुदा

आ फिर से दिखा हमको वो बीते हुए मंज़र
आ फिर से चौंका दे हमें, फिर दे दे मौक़ा

आजा के हमें, बचपन के वही खेल सिखा
आजा, तहरीर-ए-जवानी के मायने बता

अगर बस में नहीं है, तेरे, लौट कर आना
फितरत तेरी, फ़कत, बिखर-बिखर जाना

गुबार हो गया गर, अब हमें याद क्यूँ कर
बुझे बेनूर ख्वाबों को अब आबाद क्यूँ कर

फरेब-ए-सुकून, फ़स्ले-बहार का धोखा
आ फिर से ज़हर दे, आ फिर से दवा ला

ओ मेरे माज़ी, छुप-छुप के मुझे, यूँ न सता
हौसला है तो आ, इक बार ज़रा सामने आ