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ओ री गौरैया / रश्मि शर्मा

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ओ री गौरैया
क्‍यों नहीं गाती अब तुम
मौसम के गीत
क्‍यों नहीं फुदकती
मेरे घर-आंगन में
क्‍यों नहीं करती शोर
झुंड के झुंड बैठ बाजू वाले
पीपल की डाल पर

ओ री चि‍ड़ी
क्‍या तेरे घोंसले पर भी है
कि‍सी काले बि‍ल्‍ले की
बुरी नज़र
कि‍सी के आँगन
कि‍सी की छत पर
नहीं है तेरे लि‍ए
थोड़ी सी भी जगह

ओ री चराई पाखी
कहॉं गुम गई तेरी चीं-चीं
क्‍यों नहीं चुगती अब तू
इन हाथों से दाना
क्‍यों नहीं गाती
भोर में तू अपना गाना

ओ री छोटी चि‍ड़ि‍या
अब हैं पक्‍के मकान सारे
कहां बनाएगी तू घोंसला
चोंच में दबाकर
कहां ले जाएगी ति‍नका

ओ री मेरी गौरैया
रूठ न जाना, खो न जाना
आओ न
मेरे आंगन वाले आइने पर
अपनी शक्‍ल देख
फि‍र से चोंच लड़ाना
मेरे बच्‍चों को भी सि‍खा देना
संग-संग चहचहाना।