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औरतें - 1 / ज्योति रीता

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औरतें
जब तकलीफों में
कराह नहीं पातीं
तब जुड़े के साथ
लपेट कर बाँध लेतीं हैं सारी तकलीफें
और खोंस देतीं हैं
उस पर एक कांटेदार पिन

मुस्कुराने की तमाम कोशिशें
जब पड़ जातीं हैं फीकी
तब लगा लेतीं हैं
गाढ़ी लाल / गुलाबी लिपस्टिक

जब बेतरतीब ज़िन्दगी
स्वेटर की मानिद उघरती है
तब डाल लेती है
पतली-सी एक चादर

जब एड़ी की बिवाईयाँ
औरतों के बीच उड़ती है खिल्लियाँ
तब पहन लेतीं हैं
जुराबे संग जूतियाँ

और इस तरह
औरत बचा लेती है
मर्यादा परिवार की॥