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औरत का दुःख / अनिता मंडा
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औरत का दुःख इतना घना था
तपते सूरज से तालाब सूख गए
दुःख ओस सा बना रहा
उसने अपना दुःख गीतों में ढाला
हवाओं को सुनाया
लताओं को सुनाया
अकेली बैठी चिड़िया को सुनाया
बीच चौराहे गाँव को सुनाया
नदी, समुद्र, जंगल को सुनाए गीत
सारा आसमान गीतों से भर गया
औरत पर दुःख ही बरसा
उसके आँसू सूखे नहीं।