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औरों के भी ग़म में ज़रा रो लूँ तो सुबह हो / कुँवर बेचैन

औरों के भी ग़म में ज़रा रो लूँ तो सुबह हो
दामन पे लगे दाग़ों को धो लूँ तो सुबह हो।

कुछ दिन से मेरे दिल में नई चाह जगी है
सर रख के तेरी गोद में सो लूँ तो सुबह हो।

पर बाँध के बैठा हूँ नशेमन में अभी तक
आँखों के साथ पंख भी खोलूँ तो सुबह हो।

लफ़्ज़ों में छुपा रहता है इक नूर का आलम
यह सोच के हर लफ़्ज़ को बोलूँ तो सुबह हो।

जो दिल के समुन्दर में है अंधियार की कश्ती
अंधियार की कश्ती को डुबो लूँ तो सुबह हो।

खुश्बू की तरह रहती है जो जिस्म के भीतर
उस गन्ध को साँसों में समो लूँ तो सुबह हो।

दुनिया में मुहब्बत-सा 'कुँअर' कुछ भी नहीं है
हर दिल में इसी रंग को घोलूँ तो सुबह हो।