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और काँटों को लहू किसने पिलाया होगा / फ़रहत शहज़ाद
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और काँटों को लहू किसने पिलाया होगा
हम-सा दीवाना चमन में कोई आया होगा
बेसबब कोई उलझता है भला कब किससे
तुमने गुज़रा हुआ कल याद दिलाया होगा
जुज़ हमारे ऐ सुलगती हुई तन्हाई तुझे
ऐसे सीने से भला किसने लगाया होगा
कोई आया है न ‘शहज़ाद’ कोई आएगा
वहम ने याद के पर्दों को हिलाया होगा