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और भी दूँ / रामावतार त्यागी

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रचनाकार:[[रामावतार त्यागी]]{{KKGlobal}}{{KKRachna[[Category:कविताऍं]] [[Category:|रचनाकार=रामावतार त्यागी]] |संग्रह= ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~}}{{KKCatKavita}}<poem>
मन समर्पित, तन समर्पित,
 
और यह जीवन समर्पित।
 
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
 मॉं माँ तुम्‍हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन, 
किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन-
 थाल में लाऊँ सजाकर भाल में मैं जब भी, 
कर दया स्‍वीकार लेना यह समर्पण।
गान अर्पित, प्राण अर्पित,
 
रक्‍त का कण-कण समर्पित।
 
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
 मॉंज माँज दो तलवार को, लाओ न देरी, बॉंध बाँध दो कसकर, कमर पर ढाल मेरी, 
भाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ी,
 
शीश पर आशीष की छाया धनेरी।
स्‍वप्‍न अर्पित, प्रश्‍न अर्पित,
 
आयु का क्षण-क्षण समर्पित।
 
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
 
तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दो,
 गॉंव गाँव मेरी, द्वार-घर मेरी, ऑंगन, क्षमा दो, 
आज सीधे हाथ में तलवार दे-दो,
 
और बाऍं हाथ में ध्‍वज को थमा दो।
 
सुमन अर्पित, चमन अर्पित,
 
नीड़ का तृण-तृण समर्पित।
 चहता चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।</poem>