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"और भी दूँ / रामावतार त्यागी" के अवतरणों में अंतर

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और यह जीवन समर्पित।
 
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चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
 
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माँ तुम्‍हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन,
 
माँ तुम्‍हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन,
 
किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन-
 
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थाल में लाऊँ सजाकर भाल में जब भी,
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थाल में लाऊँ सजाकर भाल मैं जब भी,
 
कर दया स्‍वीकार लेना यह समर्पण।
 
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भाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ी,
 
भाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ी,
 
शीश पर आशीष की छाया धनेरी।
 
शीश पर आशीष की छाया धनेरी।
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स्‍वप्‍न अर्पित, प्रश्‍न अर्पित,
 
स्‍वप्‍न अर्पित, प्रश्‍न अर्पित,
 
आयु का क्षण-क्षण समर्पित।
 
आयु का क्षण-क्षण समर्पित।
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नीड़ का तृण-तृण समर्पित।
 
नीड़ का तृण-तृण समर्पित।
 
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
 
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
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18:29, 22 मार्च 2019 के समय का अवतरण

मन समर्पित, तन समर्पित,
और यह जीवन समर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।

माँ तुम्‍हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन,
किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन-
थाल में लाऊँ सजाकर भाल मैं जब भी,
कर दया स्‍वीकार लेना यह समर्पण।

गान अर्पित, प्राण अर्पित,
रक्‍त का कण-कण समर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।

माँज दो तलवार को, लाओ न देरी,
बाँध दो कसकर, कमर पर ढाल मेरी,
भाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ी,
शीश पर आशीष की छाया धनेरी।

स्‍वप्‍न अर्पित, प्रश्‍न अर्पित,
आयु का क्षण-क्षण समर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।

तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दो,
गाँव मेरी, द्वार-घर मेरी, ऑंगन, क्षमा दो,
आज सीधे हाथ में तलवार दे-दो,
और बाऍं हाथ में ध्‍वज को थमा दो।

सुमन अर्पित, चमन अर्पित,
नीड़ का तृण-तृण समर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।