Last modified on 17 जुलाई 2019, at 00:29

कँज की सी कोर नैना ओरनि अरुन भई / आलम

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:29, 17 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आलम |अनुवादक= |संग्रह= }} Category:पद <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कँज की सी कोर नैना ओरनि अरुन भई,
                   कीधौं चम्पी सींब चपलाई ठहराति है।
भौहन चढ़ति डीठि नीचे कों ढरनि लागी,
                   डीठि परे पीठि दै सकुचि मुसकाति है ।
सजनी की सीख कछु सुनी अनसुनी करें,
                   साजन की बातें सुनि लाजन समाति है ।
रूप की उमँग तरुनाई को उठाव नयो,
                   छाती उठि आई लरिकाई उठी जाति है ।