भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कँवल से भँवरा विछुड़ल हो, जहँ कोइ न हमार / कबीरदास

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:29, 24 अगस्त 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कँवल से भँवरा विछुड़ल हो, जहँ कोइ न हमार ।। 1।।
भौंजल नदिया भयावन हो, बिन जल कै धार ।। 2।।
ना देखूँ नाव ना बेड़ा हो, कैसे उतरब पार ।। 3।।
सत्त की नैया सिर्जावल हो, सुकिरत करि धार ।। 4।।
गुरु के सबद की नहरिया हो, खेइ उतरब पार ।। 5।।
दास कबीर निरगुन गावल हो, संत लेहु बिचार ।। 6।।