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कंटक- पथ / कविता भट्ट

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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'कविता भट्ट
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1कोई भी अपना नहीं,ना ही जाने पीर।ओ मन अब तू बावरे,काहे धरे न धीर।।2ऐसे तुम रूठे पिया, ज्यों मावस में चाँदआ जाओ इक बार तो, घोर रात को फाँद।3'''कंटक- पथ पर चल रही, तेरी यादें साथ।''''''कुछ भी जग कहता रहे, तू न छोड़ना हाथ। '''
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