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"कंटक- पथ / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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17:07, 10 जनवरी 2019 के समय का अवतरण


1
कोई भी अपना नहीं,ना ही जाने पीर।
ओ मन अब तू बावरे,काहे धरे न धीर।।
2
ऐसे तुम रूठे पिया, ज्यों मावस में चाँद
आ जाओ इक बार तो, घोर रात को फाँद।
3
कंटक- पथ पर चल रही, तेरी यादें साथ।
कुछ भी जग कहता रहे, तू न छोड़ना हाथ।