भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कंतकथैया / श्रीप्रसाद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कंतकथैया चलती नैया
आओ बैठो जल्दी भैया
नैया सबको पहुँचाएगी
अभी-अभी उस पार
सर-सर-सर-सर पार करेगी
तेज नदी की धार

कंतकथैया चलती नैया
लेकर इसको चला कन्हैया
कल-कल-कल लहरों के ऊपर
चली नाचती नाच
इसमें बैठे हैं मिल करके
हम सब बच्चे पाँच

कंतकथैया चलती नैया
आई तेज लहर ओ दैया
मगर कन्हैया बड़ा चतुर है
तुरत बचा ली नाव
कितनी खुशी हुई कैसा था
भारी तेज बहाव

कंतकथैया चलती नैया
उतर-उतरकर दिया रुपैया।