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कइसे ई धरती पर रहे हे आदमी / सिलसिला / रणजीत दुधु

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की कहियो की-की दुरगति सहे हे आदमी,
कइसे-कइसे ई धरती पर रहे हे आदमी।

आना भी लंगटे आउ जाना भी लंगटे,
दुइए चीज कहाना हे भले न´ तो बँगटे,
ई हम्मर आउ ऊ तोर कहे हे आदमी,
की-की नय दुरगति सह हे आदमी।

ई हे अदमिया बुतरू में कहा हे बेटी या बेटा,
एकरेले मनावल जा हथ देवी-देवता,
पोसा पला के दुल्हा दुल्हिन बने हे आदमी
कइसे-कइसे ई धरती पर रहे हे आदमी।

ईहे अदमियाँ बने हे बहिन आउ भाय,
तनि सुन धन ले निगले हे गाय,
भाय के भाय दुसमन बने हे आदमी,
की-की नय दुरगति सह हे आदमी।

ईहे अदमिया एकदिन बने माय बाप
अपन बाल बच्चा ले करे हे सभे पाप
जतना बन सके ओतना ढरे हे आदमी
की-की नय दुरगति सह हे आदमी।

ईहे अदमिया एक दिन बने बूढ़ी बूढ़ा,
बाल बच्चा समझे हे ओकर छाय कूड़ा,
कभी एन्ने कभी ओन्ने लहे हे आदमी
की-की नय दुरगति सह हे आदमी।

बाल-बच्चा बान्हे हे अपन-अपन बस्ता
माय-बाप ले छोड़े हे नय एको रस्ता,
जित्ते जिनगी एक दिन मरे हे आदमी,
की-की नय दुरगति सह हे आदमी।

जेकरा खिलवऽ हल सुगवा मयनमा कउर,
ओकर भिर नय हे एगो दाना के ठउर,
अपन चुल्हा अलगे करे हे आदमी,
की-की नय दुरगति सह हे आदमी।

अंत में हो जाहे सगरो से निरास
तब करे हे खाली ईसवर के आस
हे ईसवर अब ले चलऽ जपे हे आदमी
की-की नय दुरगति सह हे आदमी।