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कइसे मीत बनाईं तोहके अपना आङन के तुलसी / रामरक्षा मिश्र विमल

कइसे मीत बनाईं तोहके अपना आङन के तुलसी
हमरो माटी में देंवका के आगम होखे लागल बा।

गुमसुम बइठे चान कपारे हाथ जमल बा मन ऊड़ल
हमनी के बिबेक पर केकर नजर लगल बा सब बूड़ल
काहें अमिरित बरिसाईं जब भाप बनी उड़िए जाई
अब तऽ पनियो में अगिया के हलचल होखे लागल बा।

गलियन में अब कुक्कुर भूँकल छोड़ि दहाड़े लागल बा
शहरी भइल सियार न डर अब दाँत चियारे लागल बा
का होई जब गहुँअन पलटी आ लागी फुफकार भरे
अब तऽ सिधवो साँढ़ खुरी से माटी खोदे लागल बा।

गमला के अपनापन से बगिया कइसे उजड़े लागलि
जिनिगी के गीतन से अब जिनिगी कइसे बिखरे लागलि
मन चिंता में परल बहाईं कइसे नेहिया के गंगा
फलगू नीयन धार रेत के नीचे-नीचे भागल बा।