भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कई बार / सुशील मानव

Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:19, 19 अक्टूबर 2018 का अवतरण (' {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशील मानव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> कई ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कई बार
ज़रूरी होता है
सैनिकों का मरना
प्रतिरोध तोड़ने के लिए
कई बार
कई बार सरकार ही हो जाया करती है मुखबिर
और भेजवा देती है सूचना नक्सलियों के पास
कि, कहां से,
कब और कैसे गुजरेगा जवानों का जत्था, कई बार
कई बार बेहद आसान होता है
आदिवासी को नक्सली बताकर मार डालना
पर जब कभी आदिवासियों के प्रति भी
हमदर्दी पालने लगता है सभ्य समाज
तो कई बार बेहद जरूरी हो जाता है सभ्य समाज के वहम को तोड़ना
खतरा बन जाती है कई बार सरकार के लिए
किन्हीं दो समाजों, दो समुदायों के बीच एकता, एकजुटता
कई बार केचुए सा काँटे में फँसाकर
जंगल के पानी में फेंक देती है सरकार
सेना को, मछली के इंतजार में
कई बार मछली फँसाई और काटी, खायी जाती है इसी केचुए (सेना) के जरिये
कई बार हमारी सहानुभूति केचुए के लिए पैदा की जाती है
और हमें लगता है कि अब केंचुआ खा जाने के बाद
जायज है मछली का सरकारी फंदे में फँसना
कटना और मरना
बचपने में अक्सर गाँव के ठाकुर चवन्नी का लालच दे
लड़वा देते हम दो भाईयों को
और हम दोनों माटी में लोटम-पोट होते
पटका-पटकी में बाल नोचते-निछियाते ऊपर-नीचे होते
कहीं काँकड़ धँसता, कहीं नाखून तो कहीं दाँत
नोचा-नोची में खूनम-खून हो रोते-चिल्लाते एक दूसरे की माँ बहिन गरियाते घर आते
तो माँ दोनों से पूछती बारी बारी से
तेरी माँ कौन है? और तेरी कौन?
क्या तुम दोनों की माँ बँटी है ?
या कि अलग अलग है ?
हमारी अक्ल का पर्दा हटा माँ समझाती
अब से ठाकुर के दुआरे नहीं जाना
न ही ठाकुर के कहने पर एक दूसरे से मुड़फुटौव्वल करना
कुछ उसी तर्ज पर बनाई थी सरकार ने सलवा जुडूम
कमाल की सरकारी योजना थी भाई
सलवा जुडूम
हम आदिवासी भाइयों के मरने-मारने की फुल- प्रूफ सरकारी व्यवस्था
इतिहास में पहली बार
पहली बार किसी सरकार ने खुले तौर पर थमाया हथियार
अपने नागरिकों को रोटी की जगह
भाइयों नें बचपन में मिली माँ की सीख बिसरा दी
ठाकुर ने दोनों भाइयों को बंदूक थमा दिये
और छत्तीसगढ़ के जंगल लाल- लाल हो उठे
एक दूसरे के सीने में, भाइयों ने
प्यार की जगह भर दिये बारूद
पर जो समझदार थे वो नहीं लड़े
जिन्हें माँ के सिखाए सबक याद थे
वो नहीं लड़े
पर जो गाँव में नहीं लड़ते
वो चंबल के बीहड़ों और सुकमा के जंगलों में लड़ते हैं
यूँ कि लड़ने की हद तक मजबूर कर दिये जाते हैं
जो पैसों के लिए नहीं लड़ते वो कुचले हुए आत्मसम्मान के लिए लड़ते हैं
ठाकुर जानता था
तभी तो जो भाई नहीं लड़ते थे
उनकी बहनों से वो खुद लड़ता था
रात के जंगल में
बिस्तर के अखाड़े में
जब भाई गाँव- गेंवार गुहार लगाता
तो ठाकुर पूरे गाँव के सामने गर्व से कहता इसकी बहन रंडी है
सरकार कहती है मेरी बहन नक्सली है
और फिर तो जैसे वो
सेना को मेरी बहन का बलात्कार करने का लाइसेंस सा दे देते हैं वो!!
उन्हें पता है मेरी बहन, मेरी बेटी, मेरी साथी का बलात्कार हो जाने के बाद
मैं हाथ में हथियार लिए आऊँगा अपना बदला लेने
और वो मेरे इंतजार में बैठे रहेंगे
रास्ते में घात लगाये ।
कई बार
बेहद ज़रूरी हो जाता है बलात्कार
मेरी हत्या की तरह
मेरी हत्या के लिए ​​