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कच्ची कविताओं के पक्के रंग / मृदुला सिंह

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गली में खेलते बच्चों को
यह ध्यान नहीं होता कि
उनकी हरकतों को
दुनिया क्या कहेगी
कूदना
चिल्लाना
गिरना
उठना
रुलाई
हंसाई

इनके यही सब तो मिलाते हैं हमे
मनुष्य होने के आदिम छोर से

कंचे खेलते
गेंदों को उछालते
गिल्ली डंडे से बाते करते
बच्चों की आँखों में देखना
चमकते मिलेंगे चटक कत्थई रंग

उनमें देखना
नदी
पहाड़
जंगल
आकाश

तितलियाँ जो जानती हैं
उनका चुम्बन रखा है
लाल फूल पर
पूरी दुनिया के बच्चों का किल्लोल
एक जैसा होता है
चाहे वे जिस भी देश जाति
और धर्म के हों
वे फर्क जाहिर करनेवाले पन्ने नहीं हैं
और न ही उन पर लड़ने वाले हथियार
वे हैं धरती की कच्ची कविताएँ

आओ!

कोरा में भर ले दुनिया भर के बच्चों को
बचपन पर खतरे हैं बड़े
आओ छिपा लो उन्हें!