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"कटे न पाश / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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खुशियाँ हुई कैद
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पंख भी कटे।
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प्राण हुए  हैं
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अब बोझ -से भारी
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चले भी आओ।
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कैसा मौसम!
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झुलसी हैं ऋचाएँ
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असुर हँसें।
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झेले पाषाण -वर्षा
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अस्तित्व मिटे।
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ईर्ष्या सर्पिणी
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फुत्कारे अहर्निश
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झुलसे मन।
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कहाँ से लाएँ
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चन्दनवन -मन !
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लपटें घेरे।
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अश्रु से सींचे
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महाकाव्य के पन्ने
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रच दी नारी ।
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मन नहीं बाँचा
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अन्धे असुर बने
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रक्त -पिपासु ।
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20
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दर्द जो पीते
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व्यथित के मन का
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सुधा न माँगे।
  
 
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03:58, 10 अगस्त 2018 का अवतरण


11
मुस्कानें मरी
हँसी गले में फँसी
बधिक -पाश
12
कटे न पाश
खुशियाँ हुई कैद
पंख भी कटे।
13
प्राण हुए हैं
अब बोझ -से भारी
चले भी आओ।
14
कैसा मौसम!
झुलसी हैं ऋचाएँ
असुर हँसें।
15
उर -पाँखुरी
झेले पाषाण -वर्षा
अस्तित्व मिटे।
16
ईर्ष्या सर्पिणी
फुत्कारे अहर्निश
झुलसे मन।
17
कहाँ से लाएँ
चन्दनवन -मन !
लपटें घेरे।
18
अश्रु से सींचे
महाकाव्य के पन्ने
रच दी नारी ।
19
मन नहीं बाँचा
अन्धे असुर बने
रक्त -पिपासु ।
20
दर्द जो पीते
व्यथित के मन का
सुधा न माँगे।