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"कटे न पाश / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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मुस्कानें मरी
 
मुस्कानें मरी
 
हँसी गले में फँसी
 
हँसी गले में फँसी
 
बधिक -पाश
 
बधिक -पाश
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'''कटे न पाश'''
 
'''कटे न पाश'''
 
खुशियाँ हुई कैद
 
खुशियाँ हुई कैद
 
पंख भी कटे।
 
पंख भी कटे।
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प्राण हुए  हैं  
 
प्राण हुए  हैं  
 
अब बोझ -से भारी
 
अब बोझ -से भारी
 
चले भी आओ।
 
चले भी आओ।
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कैसा मौसम!
 
कैसा मौसम!
 
झुलसी हैं ऋचाएँ
 
झुलसी हैं ऋचाएँ
 
असुर हँसें।
 
असुर हँसें।
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उर -पाँखुरी
 
उर -पाँखुरी
 
झेले पाषाण -वर्षा
 
झेले पाषाण -वर्षा
 
अस्तित्व मिटे।
 
अस्तित्व मिटे।
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ईर्ष्या सर्पिणी
 
ईर्ष्या सर्पिणी
 
फुत्कारे अहर्निश
 
फुत्कारे अहर्निश
 
झुलसे मन।
 
झुलसे मन।
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कहाँ से लाएँ
 
कहाँ से लाएँ
 
चन्दनवन -मन !
 
चन्दनवन -मन !
 
लपटें घेरे।
 
लपटें घेरे।
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अश्रु से सींचे
 
अश्रु से सींचे
 
महाकाव्य के पन्ने
 
महाकाव्य के पन्ने
 
रच दी नारी ।
 
रच दी नारी ।
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मन  बाँचा
 
मन  बाँचा
 
अन्धे असुर बने
 
अन्धे असुर बने
 
रक्त -पिपासु ।
 
रक्त -पिपासु ।
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दर्द जो पीते
 
दर्द जो पीते
 
व्यथित के मन का
 
व्यथित के मन का

23:07, 5 मई 2019 के समय का अवतरण

44
मुस्कानें मरी
हँसी गले में फँसी
बधिक -पाश
45
कटे न पाश
खुशियाँ हुई कैद
पंख भी कटे।
46
प्राण हुए हैं
अब बोझ -से भारी
चले भी आओ।
47
कैसा मौसम!
झुलसी हैं ऋचाएँ
असुर हँसें।
48
उर -पाँखुरी
झेले पाषाण -वर्षा
अस्तित्व मिटे।
49
ईर्ष्या सर्पिणी
फुत्कारे अहर्निश
झुलसे मन।
50
कहाँ से लाएँ
चन्दनवन -मन !
लपटें घेरे।
51
अश्रु से सींचे
महाकाव्य के पन्ने
रच दी नारी ।
52
मन बाँचा
अन्धे असुर बने
रक्त -पिपासु ।
53
दर्द जो पीते
व्यथित के मन का
सुधा न माँगे।